- अगर ईश्वर है तो भाग्य कैसे सम्भव है ?
- अगर सब कुछ भाग्य में लिखे अनुसार ही होता है तो फिर ईशकृपा कैसे सम्भव है ?
- अगर भाग्य बदल नहीं सकता तो प्रार्थना से भाग्योदय कैसे सम्भव है ?
- अगर भाग्य नहीं है और केवल ईश्वर का विधान चलता है तो फिर ईश्वर निष्ठुर क्यूँ है ?
- अगर ईश्वर प्रार्थनाओं से नहीं पिघलता तो फिर वह दयालु कैसे है ?
- अगर वह पिघल जाए तो क्या ईश्वर भावुक है ?
- अगर वह भावुक है तो क्या वह जी हुज़ूरी करने पर गुनाहो को माफ़ कर सकता है ?
- अगर माफ़ कर देता है तो उसमे और मुझमे क्या फर्क है ?
- अगर नहीं करता तो ये मंदिर ये गिरजे और ये जगराते क्यूँ है ?
- अगर मंदिर, गिरजे और ईश्वर ही धर्म की आत्मा है तो क्या धर्म भी फ़िज़ूल है ?
- अगर धर्म फ़िज़ूल है तो फिर इतना बैर इतनी हिंसा, कत्ले-आम क्यूँ है ?
और इन धर्मो, ईश्वरों और भाग्यों के बीच आदमी का क्या अनुपात रह जाता है, सिर्फ सिफर.................
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