Saturday, February 1, 2014

तोल मोल के बोल......पर थोडा दिल से

शिवराज चौहान साहब
केवल अपील मात्र से समस्या का समाधान नहीं होता। इसके लिए विचारधारा में परिवर्तन जरूरी है।
आप कह रहे हैं कि बेटा बेटी में फर्क मत करो बेटे को प्यार देते हो तो बेटी को भी लाड दो। होना चाहिए पर होता नहीं है आज संविधान लागू किये ६४ बरस हो गए लेकिन समानता का अधिकार केवल पन्ने पर ही है। क्या हाथ आया और किसके आया ये कहाँ किस्से छिपा है ? नेताजी तिजोरी भरते हैं २-४ अफसर स्टिंग और रेड में पकडे जाते हैं बाकी वकील साहब तो हैं ही काले को सफ़ेद करने के तरीके बताने के लिए।

नेताजी जो मुसलमानो के बड़े खिदमतगार बनते फिरते हैं को भी उनकी भूख और उनका दर्द इतना लजा नहीं पाता कि वो सैफई महोत्सव के बजाय पुनर्वास और विस्थापन का काम करे बस उनको फिक्र है कि उनका उत्तर प्रदेश गुजरात न बन जाए क्यूंकि जंगल राज चलाना है तो जम्हूरियत और विकास से तो तौबा करनी ही होगी, क्यूँ ?
८०० करोड़ की संपत्ति है लेकिन एक नेता (व्यापारी कहना ज्यादा उचित होगा) अब राज्य सभा में चुनकर गए हैं मकसद देश सेवा हो या मेवा हो भाई तिजोरी तो भरनी ही है आखिर टिकट फ़ोकट का थोड़े न मिला है पूरे ५० करोड़ में खरीदा है।

खैर कहाँ मैं विषय से भटक रहा हूँ लिख रहा था लिंग भेद पे लेकिन कसम से दिल में इतनी टीस और इतना गुस्सा है कि सब गोल मोल हो जाता है। कुछ मित्र निराशावादी कुछ क्रन्तिकारी तो कुछ केवल बातो का शेर भी कह देते हैं 

हाँ तो मैं था मुख्यमंत्री की अपील पर, मैं समझता हूँ कि आपकी शायद मजबूरी रही हो ऐसी अपील करना हो भी क्यूँ न चुनाव भी तो आ रहे हैं अब कुछ लोक लुभावन बातें तो पेलनी ही पड़ेगी वरना मैं क्या कोई बहुत बड़ा तीस मार खान हूँ कि जो बात मुझे समझ आती है नेताजी की समझ से परे हो।
वैसे जो भी हो मैनू किं फ़र्क पेन्दा है। लिखने और बोलने की आज़ादी जब तवलीन कौर और अरुंधति रॉय को है तो मैं क्यूँकर बचता रहूँ ?

अरे फिर से वही.………

चलो शिवराज साहब मैं वादा करता हूँ कि मैं अपने बेटे और बेटी में कोई फर्क नहीं करूंगा दोनों को आत्मनिर्भर बनाऊंगा लेकिन क्या आप मुझसे वादा करेंगे कि -

१. जब मेरी बच्ची अहाते में खेल रही हो तो कोई उसको किडनैप न करे क्या आप मेरे शहर वालो को सम्मानित रोजगार देने का वादा करते हैं कि वो किडनेपिंग के धंधे में न जाए ?
२. जब मेरी बच्ची किसी स्कूल में पढ़ने लगे तो उसको स्कूल में साफ़ और सुरक्षित टॉयलेट मिले ताकि उसको असहजता महसूस नहीं हो और वह बेहतर पढाई कर सके।
३. जब मेरी बेटी बड़ी हो जाए तो वह एक निडर, साहसी और आत्मनिर्भरता का जीवन जी सके उसको सड़क पर चलते हुए, सिनेमा जाते हुए या फिर कपड़ो के चयन में ये डर न हो कि निर्भया भी इसी देश में पैदा हुयी थी और कोई पंचायत, पुलिस अधिकारी या फिर कोई गणमान्य अफसर अगर कपड़ो और हावभाव को लेके फतवा निकले तो वो भी भेद न करे।
४. जब वो ऑफिस में काम करे तो उसको किसी भेदभाव और गलत आचरण से मुखातिब न होना पड़े क्या ऐसा कानून और उसको लागू करने वाली मशीनरी देंगे आप ?
५. क्या आप मुझे गारंटी देते हैं कि अब कोई मनु शर्मा ताकत के नशे में चूर हो किसी जेसिका का कत्ल नहीं करेगा और न ही उलजलूल पेरोल पे बाहर आज़ाद फिरेगा ?
६ . क्या आप मुझसे वादा करते है कि जब मैं अपनी लाड़ली की शादी करूँ तो न मुझे दहेज़ की चिंता हो न ही शादी के बाद उसको ससुराल में प्रताड़ित किया जाए और अगर वो ४९८-A या फिर DVA का सहारा ले तो निष्पक्ष न्याय हो केवल कोर्ट कचहरी के चक्कर नहीं ?
७. क्या आप गारंटी लेते हैं कि कल को जब मेरी रानी बेटी माँ बने तो उसको ससुराल वाले लिंग परीक्षण के लिए बाध्य न करे और न ही कोई डॉक्टर ऐसा काम करने की हिम्मत कर सके ?

शिवराज साहब और अकेले आप क्यूँ सारे नेताजी बाबत कहता हूँ जब कहते हैं तो दिल से कहिये ताकि कुछ काम भी करे आप सब
निर्भया एक्ट के बावजूद कितनी बहने आज भी पुरुषवादी दमन का शिकार हो रही हैं और जब वो रिपोर्ट करती हैं तो तो आप के महकमो से ही कोई उनको डरने धमकाने आ जाता है क्यूँ ताकि आपकी छवि ख़राब न हो ? वैसे कहाँ आप लोग कुछ कर पाएंगे जब इस देश में IAS, IPS जैसे अफसर, जिनपे कानूनो को लागू करने का जिम्मा है, की बोली लगती है और जो ज्यादा दे गया उसीका स्वयंवर।

याद रखिये ये देश और यहाँ का शासन आपकी बपौती नहीं हैं आप सब जनता के लिए काम करने के लिए चुने गए हैं अपनी रोटी सेकने के लिए नहीं। मैं नहीं कहता आप अपनी जेब गर्म मत कीजिये क्यूंकि आप वो तो न करने से रहे इसलिए कम से कम बेशर्मी भरे बयानो से तो तौबा कीजिये। क्यूँ सुशासन का दावा करने वाले आप सबो के राज में डॉक्टरों को हड़ताल पे जाना पड़ता है और क्यूँ आपने इसका इलाज नहीं कर रखा है ? आप बीमार हो तो सरकारी खजाने पे USA, यूरोप जाए और हम बीमार पड़े तो लो डॉक्टर भी नसीब नहीं और मिले तो समझो आधी जेब कट गयी

कुछ थोडा दिल से

हफ़्तों से दिल में एक कसक थी लेकिन समयाभाव के कारण पन्ने पर उतारने में असमर्थ रहा आज वक़्त मिला इसलिए कई अनुभवो की सामग्री वापरते हुए........ 

सबसे पहले आज का ही.…… 
आज २६ जनवरी ६५वाँ गणतंत्र दिवस। मेरी आँख खुलती है सुबह के ठीक ७:१५ बजे, कुछ विशेष जैसा अनुभव नहीं होता। पानी पीकर दांत मांजते हुए घर के आँगन में देखता हूँ तो पापा एक तिरंगा लाके मेन गेट पे टांग गए हैं। याद आया कि हाँ आज तो राष्ट्रीय पर्व है लेकिन क्या अब सड़को पर वो देशभक्ति के गीत नहीं बजते जो मेरे दौर में भले ही वर्ष में २ दिन लेकिन सुबह से बजते हुए किसी को थे। तब भी क्रोध नहीं आता था कि चलो २ दिन तो सही.....
पर आज क्या हुआ ? क्या अब वैसे गाने तराने नहीं बजते ? अचरज से मैं माँ से पूछता हूँ लेकिन वह अपने काम में लगी ध्यान नहीं देती।

जाड़ा ज्यादा है इसलिए मैं छत का रुख करता हूँ। मकान ऊंचा है तो मुख्य सड़क दिख जाती है लेकिन ये क्या आज कोई प्रभात फेरी नहीं कोई बच्चो का स्कूल की ओर भागता दल नहीं ? गेंदे और रजनीगंधा के फूलों का श्रृंगार किये नर्तकी बालाए नहीं ?
मैंने सोचा कि चलो भाई परिवर्तन तो जीवन का नियम है मेरे बचपन में ये सब होता था सुबह से स्कूल और सामुदायिक भवन जाने का उत्साह होता था, भाषण देने को लालायित रहता था और लड्डू खाने का लालच। पर ये क्या पड़ोस के बच्चे तो अभी उठे हैं और यहाँ वहाँ ताक रहे हैं। मैंने पूछा क्यूँ जनाब आज छुट्टी मना रहे हो क्या ? तो बच्चा बोला कि हाँ भैय्या आज सन्डे है इसलिये.........
मैंने बोला कि लेकिन आज तो स्कूल में कोई प्रोग्राम होगा वहाँ हिस्सा नहीं ले रहे ? इतने में उसकी बहन बोल पड़ी कि भैय्या सन्डे को नहीं होता तो जरूर जाते और स्कूल जाते कैसे ? ऑटो वाला आता नहीं और पापा सो रहे हैं। बच्ची की जबान में एक टीस दिख रही थी मुझे। मैंने पूछा कि तिरंगा चाहिए ? दोनों दौड़े आये और मेरे हाथ से २ पेपर के तिरंगे ले गए और वंदे मातरम वंदे मातरम कहने लगे।

घर पे भी परिवर्तन था, यूँ तो आज के दिन कुछ विशेष पकवान बनाया जाता था और दूरदर्शन पे आने वाली पिच्चर पे पड़ोस की महिलाओं की बात होती थी पर ये क्या न तो कोई विशेष खाना ? न दूरदर्शन को लेके कहीं कोई उत्साह। सहसा मेरी दृष्टि डिश एंटीना पर पड़ी और याद आया कि अरे हाँ अब तो pay & watch का जमाना है इतने चैनल है फिर कोई दूरदर्शन क्यूँ देखेगा।

टहलते टहलते मुख्य सड़क पे दूध लेने पंहुचा तो देखा कि नेताजी का काफिला चला है शायद नेताजी नदारद हैं बस उनकी पलटन है। अब भाई नेताजी के लौंडे निकले वो भी लोगो को बिना बताये ये तो नेताजी का अपमान होगा वो भी तब जबकि प्रदेश में उनके ही दल की सरकार है। लेकिन उनका पोंगा आज न तो मेरा रंग दे बसंती चोला की तान दे रहा था न ही हम हिन्दुस्तानी कि दहाड़ लगा रहा था। अब आज के लौंडे हैं तो आज की आवाज होगी, है ना ?
गाना था आज दिल है सानी सानी ब्लू है पानी पानी.........

खैर.…… जय हो लोकतंत्र कीं