हुआ यूँ था कि मेरे मित्र जो क्लब में थे ने मुझे सोते हुए जगाया और कार्यक्रम हेतु बुलाया और मैं भी उस वक़्त ऊँघता हुआ पंहुचा और जो कई गंभीर विषयों वाले शीर्षक जैसे माँ की ममता इत्यादि प्रस्तुत किये गए. एक पल के लिए तो मैं बिलकुल रिक्त हो गया जैसे भावनाशून्य हो गया हूँ फिर उनमे एक हास्य का पुट लिए शीर्षक दिखाई दिया और मैंने बिना सोचे समझे लिखना शुरू किया.
भावों में तरंगमयी परिवर्तन था शुरू किया था हास्य का पुट लेते हुए लेकिन कब वो करुणा और भावों के सागर में डूब गया इसका मुझे ख्याल ही न रहा और शब्द चयन के मामले में भी मैं अचिन्त्य सा रह गया
बाद में जब अपनी कविता को प्रेस क्लब के पत्र में छपा देखा तो खूब हंसी आई और कुछ घमंड का भी अनुभव कि देखो मेरे काव्य लेखन का लोहा कि उंघते हुए भी मैं प्रथम पुरस्कार लायक कविता लिख सकता हूँ लेकिन अपने साथी कवियों के काव्य की गहराई को पहचाना तो क्षण मात्र भी अहंकार शेष न रहा और लज्जित भी हुआ.